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इककाई पकाठ – ययोजनका

 ककका – ग्यकारहवव
 पपुस् तक – आरयोह (भकाग-१)
 ववषय-वस्तपु – गद्य (हकास्य-व्ययंग्य कथका)
 प्रकरण – ‘ जकामपुन कका पपेड़ ’
वशिकण - उदपेश् य :-
(1) जकानकात्मक –
(1) छकातत्रों कयो ककायकार्यालययी ततौर-तरयीकत्रों ककी जकानककारयी दपेनका।
(2) मनपुष्य-मकात कपे स्वभकाव एवयं व्यवहकार ककी जकानककारयी दपेनका।
(3) पकाठ ममें ववणर्यात मपुख्य वबिन्दपुओयं कयो आत्मसकात करनका।
(4) पकाठ ककी ववषयवस्तपु कयो पपूवर्या ममें सपुनयी हहई घटनका यका वकसयी लपेख सपे सयंबिद्ध करनका।
(5) नए शिब्दत्रों कपे अथर्या समझकर अपनपे शिब्द- भयंडकार ममें ववृवद्ध करनका।
(6) सकावहत्य कपे गद्य –ववधका (हकास्य-व्ययंग्य कथका) ककी जकानककारयी दपेनका।
(7) ननैवतक मपूल्यत्रों ककी ओर प्रपेररत करनका।
(8) छकातत्रों कयो एक जकागरुक और सवक्रिय नकागररक बिननपे ककी प्रपेरणका दपेनका।
(2) कतौशिलकात्मक -
(1) स्वययं हकास्य-व्ययंग्य कथका वलखनपे ककी ययोग्यतका कका ववककास करनका।
(2) ककायर्यालययीन ततौर-तरयीकत्रों ममें बिदलकाव लकानपे कपे वववभन्न उपकायत्रों कका व्यकावहकाररक जकान प्रकाप्त करनका।
(3) बियोधकात्मक –
(1) लपेख ककी मपुख्य ववषयवस्तपु कयो समझनपे कका प्रयकास करनका।
(2) रचनकाककार कपे उदपेश्य कयो स्पष्ट करनका।
(3) लपेख ममें आए स्मरण रखनपे ययोग्य स्थलत्रों कका चपुनकाव करनका।
(4) सरककारयी ककायकार्यालयत्रों ममें व्यकाप्त अननैवतक ककायर्या-शिनैलयी कपे बिकारपे ममें सजग हयोनका।
(4) प्रययोगकात्मक –
(1) लपेख कयो अपनपे दनैवनक जयीवन कपे सयंदभर्या ममें जयोड़कर दपेखनका।
(2) लपेख सपे वमलयी वशिककाओयं पर अमल करनका ।
(3) पकाठ कका सकारकायंशि अपनपे शिब्दत्रों ममें वलखनका।
(4) कहकानयी कयो एककायंककी कपे रूप ममें मयंचस्थ करनका।
सहकायक वशिकण – सकामगयी :-
(1) चकाक , डस्टर आवद।
(2) पकावर प्वकाइयंट कपे दकारका पकाठ ककी प्रस्तपुवत।
पपूव र्या जकान :-
(1) ‘ सरककारयी दफ़्तरत्रों ककी ककायर्या-शिनैलयी ’ कपे बिकारपे ममें थयोड़का जकान हनै।
(2) दपेशि ककी जयीवन - शिनैलयी कपे बिकारपे ममें जकान हनै।
(3) हकास्य-व्ययंग्य शिनैलयी कका नकाम सपुनका हनै।
(4) सकावहवत्यक-भकाषका ककी थयोड़यी-बिहह त जकानककारयी हनै।
(5) मकानवयीय स्वभकाव ककी जकानककारयी हनै।

प्रस्तकावनका – प्रश्न :-
(1) बिचयो! क्यका आपकपे आसपकास ऐसपे लयोग रहतपे हहैं जयो सरककारयी ककायकार्यालयत्रों ममें ककायर्यारत हहैं?
(2) क्यका आप सरककारयी ककायकार्यालयत्रों ककी ककायर्या-शिनैलयी कपे बिकारपे ममें जकानतपे हहैं?
(3) हमकारपे दपेशि कपे लयोगत्रों ककी जयीवन – शिनैलयी कनै सयी हनै और कनै सयी हयोनयी चकावहए?
(4) मनपुष्य ककी स्वभकावगत ववशिपेषतकाएएँ बितकाइए।
उदपेश् य कथन :- बिचयो! आज हम लपेखक ‘ कवृ श्न चयंदर ’ कपे दकारका रवचत हकास्य-व्ययंग्य कथका शिनैलयी ककी रचनका ‘ जकामपुन कका पपेड़ ’ कका अध्ययन करमेंगपे।
पकाठ ककी इककाइयकाएँ—
प्रथम अवन्ववत— ( रकात कयो...........................हटकायका जकाएगका )
 झक्कड़ कपे ककारण सपेक्रिपेटपेररएट कपे ललॉन ममें पपेड़ कका वगरनका।
 पपेड़ कपे नयीचपे वकसयी आदमयी कका दबिका हयोनका।
 भयीड़ कका इकटका हयोनका।
 मकालयी, चपरकासयी, क्लकर्या आवद कका अपनका-अपनका मत हयोनका।
 पपेड़ हटकानपे कयो लपेकर लयंबियी बिहस कका चलनका। आधका वदन ककी समकावप्त।
वदतयीय अवन्ववत :- ( दपूसरपे वदन.......................वहकाएँ सपे हट गयका )
 दपूसरपे वदन कवृ वष ववभकाग कपे द्वकारका पपेड़ हटकानपे सपे मनका करनका।
 शिकाम कयो पपेड़ हटकानपे कका ककाम हलॉटर्टीकल्चर वडपकाटर्याममेंट कपे हवकालपे हयोनका ।
 रकात कयो दबिपे हहए आदमपे कयो मकालयी कपे द्वकारका खकानका वखलकानका।
तवृत यीय अवन्ववत :- ( तयीसरपे वदन…………………..मगर आदमयी मर जकाएगका )
 हलॉटर्टी क ल्चर ववभकाग कपे द् वकारका पपेड़ ककाटनपे सपे मनका करनका।
 फ़काइल कयो वमवडकल वडपकाटर्याम मेंट भपेज का जकानका।
चतपुथ र्या अवन्ववत :- ( रकात कयो मकालयी नपे… ………………..और अजर्जेंट वलखका हनै )
 दबिपे हह आ आदमयी शिकायर हनै – जकान पड़नका।
 सकावहत्यककारत्रों और कल्चरल वडपकाटर्याम टमें कपे लयोगत्रों ककी सहनपुभ पूव त।
पयंच म अवन्ववत :- ( शिकाम कयो मकालयी नपे… …………….पपूण र्या हयो चपुक की थयी )
 फ़लॉरपेस् ट वडपकाटर्याम मेंट कपे लयोगत्रों कका आरयी आवद लपेक र पपेड़ ककाटनपे आनका।
 प्रधकानमयंत यी कका पपेड़ ककाटनपे कका आदपेशि वमलनका।
 फ़काइल कपे सकाथ-सकाथ उस आदमयी कपे जयीवन ककी फ़काइल भयी पपूण र्या हयोनका।

वशिकण वववध :-
क्रिमकायंक अध्यकापक - वक्रियका छकात - वक्रियका

१. पकाठ कका सकारकायंशि :- कहकानयी कयो ध्यकानपपूवर्याक सपुननका और समझनपे


‘ जकामपुन कका पपेड़ ’ कवृ श्न चयंद र ककी एक प्रवसद्ध हकास्य-व्ययंग् य कथका हनै। हकास्य-व्ययंग् य कपे कका प्रयकास करनका। नकायक कपे चररत पर तथका
वलए चयीज़त्रों कयो अनपुप कात सपे ज़्यकादका फनै लका-फपु लकाकर वदखलकानपे ककी पररपकाटयी पपुर कानयी हनै सकामकावजक बिपुरकाई पर अपनपे ववचकार प्रस्तपुत
और यह कहकानयी भयी उसकका अनपुप कालन करतयी हनै। इसवलए यहकाएँ घटनकाएएँ अवतशिययोवक्तिपपूण र्या करनका।
और अववश्वनयीय जकान पडएयं, तयो कयोई हनैर त नहव। ववश्वसनयीयतका ऐसयी रचनकाओयं कपे
मपूल् यकायंक न ककी कसतौटयी नहव हयो सकतयी। प्रस्तपुत पकाठ ममें हएँस तपे -ह~म्सकातपे हयी हमकारपे भयीतर
इस बिकात ककी समझ पनैद का हयोतयी हनै वक ककायकार्याल ययी ततौर-तरयीकत्रों ममें पकायका जकानपे वकालका
ववस्तकार वकतनका वनरथर्याक और पदकानपुक्रि म वकतनका हकास्यकास्पद हनै। बिकात यहव तक नहव
रहतयी। इस व्यवस्थका कपे सयंव पेद नशिपून् य एवयं अमकानवयीय हयोनपे कका पकका भयी हमकारपे सकामनपे
आतका हनै।

२. लपेख क-पररचय :- लपेखक कपे बिकारपे ममें आवश्यक जकानककाररयकाएँ


अपनयी अभ्यकास –पपुवस्तकका ममें वलखनका।
जन्म : सनन् १९१४,पयंज काबि कपे वज़यीरकाबिकाद गकाएँव (वज़लका – गपुज रकायंक लकायं)

:
प्रमपुख रचनकाएएँ एक वगरज़का-ए-खयंदक, यपूकपेवलप्टस ककी डकालयी(कहकानयी सयंगह);
वशिकस्त, ज़रगकाएँव ककी रकानयी, सड़क वकापस जकातयी हनै, आसमकान रतौशिन हनै, एक गधपे ककी
आत्मकथका, अन्नदकातका, हम वहशियी हहैं, जबि खपेत जकागपे, बिकावन पतयी, एक वकायवलन
समयंदर कपे वकनकारपे, ककागज़ ककी नकाव, मपेरयी यकादत्रों कपे वकनकारपे
(उपन्यकास)
सम्मकान : सकावहत्य अककादमयी सवहत बिहह त सपे पपुर स्ककार
वनधन : सनन् १९७७

३. वशिकक कपे दकारका पकाठ कका उच स्वर ममें पठन करनका। उचकारण एवयं पठन – शिनैलयी कयो ध्यकान सपे
सपुननका।
४. पकाठ कपे अवतरणत्रों ककी व्यकाख्यका करनका। पकाठ कयो हहदययंगम करनपे ककी कमतका कयो
ववकवसत करनपे कपे वलए पकाठ कयो ध्यकान सपे
सपुननका। पकाठ सपे सयंबिवधत अपनयी वजजकासकाओयं
कका वनरकाकरण करनका।
५. कवठन शिब्दत्रों कपे अथर्या :-
झक्कड़ – आएँधयी छकातत्रों दकारका अपनयी अभ्यकास- पपुवस्तकका ममें
रुआएँसका – रयोनयी सपूरत वलखनका।
तकाता़जपुबि – आश्चयर्या
हलॉटर्टीकल्चर – उद्यकान कवृ वष
एगयीकल्चर - कवृ वष
तगकाफ़पुल – ववलयंबि, दपेर, उपपेकका
६. छकातत्रों दकारका पवठत अनपुच्छपेदत्रों ममें हयोनपे वकालपे उचकारण सयंबिधयी अशिपुवद्धयत्रों कयो दपूर करनका। छकातत्रों दकारका पठन।
७. पकाठ ममें आए व्यकाकरण कका व्यकावहकाररक जकान प्रदकान करनका। व्यकाकरण कपे इन अयंगत्रों कपे वनयम, प्रययोग एवयं
 अयंगपेज़यी शिब्दत्रों कपे वहन्दयी प्रययोग उदकाहरण कयो अभ्यकास-पपुवस्तकका ममें वलखनका।
 सयंयक्ति
पु वकाक्यत्रों कका सरल वकाक्यत्रों ममें रुपकायंतरण
गवृह – ककायर्या :-
(1) पकाठ कका सहयी उचकारण कपे सकाथ उच स्वर मपेएँ पठन करनका।
(2) पकाठ कपे प्रश्न – अभ्यकास करनका।
(3) लपेख ककी प्रमपुख घटनकाओयं ककी सयंकपेप ममें सपूचयी तनैयकार करनका।
(4) पकाठ ममें आए कवठन शिब्दत्रों कका अपनपे वकाक्यत्रों ममें प्रययोग करनका।
पररययोजनका ककायर्या :-
(1) ‘ कवृ श्न चयंदर ’ ककी पपुस्तकमें पपुस्तककालय आवद सपे सयंगह कर पढ़नका।
(2) सरककारयी ककायकार्यालय ककी ककायर्या-शिनैलयी पर आधकाररत कयोई लपेख वलखनका।
(3) मशिहह र टयी.वयी. धकारकावकावहक ‘ ऑवफ़स-ऑवफ़स ’ दपेखनका।
मपूल् यकायंक न :-
वनम्न वववधयत्रों सपे मपूल्यकायंकन वकयका जकाएगका :-
1. पकाठ-पपुस्तक कपे बियोधकात्मक प्रश्न—
 दबिका हह आ आदमयी एक कवव हनै, यह बिकात कनै सपे पतका चलयी और इस जकानककारयी कका फ़काइल ककी यकातका पर क्यका असर पड़का ?
 कवृ वष ववभकाग वकालत्रों नपे मकामलपे कयो हलॉटर्टीकल्चर ववभकाग कयो ससौंपनपे ककी पयीछपे क्यका तकर्या वदए ?
 इस पकाठ सपे सरककारयी ककायकार्यालयत्रों कपे ककायर्या कपे बिकारपे ममें क्यका जकानककारयी वमलतयी हनै ?
 इस कहकानयी कपे अन्य दयो शियीषर्याक सपुझकाइए।
2. इककाई परयीककाएएँ
3. गवृह – ककायर्या
4. पररययोजनका - ककायर्या

वशिकक कपे हस्तकाकर प्रकाचकायर्या

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